गुजरात राज्य का आदिवासी बहुल क्षेत्र दाहोद इस विधानसभा चुनाव में शांत नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कर्मभूमि रहे इस क्षेत्र पर कब्जा पाने के लिए भाजपा पूरी ताकत के साथ मैदान में जुटी हुई है। कांग्रेस के इस किले को भेदने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी भी चार माह में दो बार सभा कर चुके हैं। हालांकि इन चुनावों में सभी छह सीटों पर भाजपा को अपनी राह आसान नजर आ रही है। क्योंकि कांग्रेस अंतर्कलह से जुझने के साथ ही बागियों के मैदान में उतरने से परेशान है।
दाहोद पर 15 साल से कांग्रेस का कब्जा
जिले की छह सीटों में सबसे अहम सीट दाहोद पर 15 साल से कांग्रेस का कब्जा है। शहरी आबादी वाली इस सीट को केंद्र सरकार ने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी में इसे शामिल किया है। पूरे प्रदेश में यह शहर चुनिंदा उन शहरों में शामिल है जहां पीएम मोदी की सीधी नजर है। पीएम मोदी जब प्रचारक थे, तब उनका क्षेत्र दाहोद और इसके आसपास के क्षेत्र ही थे। भाजपा ने इस सीट से कन्हैयालाल किशोरी को मैदान में उतारा है। 2017 के चुनावों में किशेारी बहुत कम अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार हारे गए थे। कांग्रेस ने इस बार जिला प्रमुख हर्षद निनामा को मैदान में उतारा है। शहरी क्षेत्र में भाजपा की अच्छी पैठ है। जबकि कांग्रेस को चुनावों में ग्रामीण आबादी से उम्मीद है।
गरबाड़ा सीट पर कांग्रेस का नुकसान करेगी आप
इसी तरह गरबाड़ा सीट भी कांग्रेस का गढ़ कही जाती है। यहां पिछले 10 साल से कांग्रेस का शासन है। इस सीट से कांग्रेस की चंद्रिकाबेन बारीया विधायक हैं। आदिवासी बहुल इस सीट पर बारीया का दबदबा है। वे क्षेत्र की दबंग नेता के तौर पर जानी जाती हैं। यहां पेयजल, सड़क व साफ-सफाई की समस्या को लेकर लोगों में असंतोष है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या सिंचाई का पानी है, जिससे किसान परेशान हैं।
युवाओं के लिए रोजगार भी एक सवाल है। स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा उद्योग ना होने के कारण लोगों को रोजगार और आजीविका के लिए अन्य क्षेत्रों में जाना पड़ता है। 2017 में गरबाडा से कांग्रेस के बारीया चंद्रीकाबेन छगनभाई ने 64 हजार वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। वहीं भाजपा के भाभोर महेंद्रभाई रमेशभाई को 48 हजार वोट मिले थे। इस बार भी हारे हुए उम्मीदवार भामोर महेंद्रभाई को ही मौका दिया है। हालांकि इस चुनाव में भाजपा की राह आसान नजर आ रही है। क्योंकि कांग्रेस नेता शैलेष भामौर आम आदमी पार्टी के टिकट से मैदान में उतरे हैं। शैलेष की भी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। ऐसे में कांग्रेस का नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है।
देवगढ़ बारिया सीट पर भाजपा का डंका
क्षेत्र की देवगढ़ बारिया सीट पर भाजपा का डंका बजता है। भाजपा के खाबड़ बचुभाई ने 2017 में कांग्रेस वाखला भारतसिंह प्रतापभाई को करारी शिकस्त दी थी। इस सीट पर करीब 75 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। इनमें भी भील और पटेलिया समाज के आदिवासियों का दबदबा है। यही कारण है कि इस सीट पर भी आदिवासियों का बोलबाला है। इस चुनावों में भाजपा की जीत बहुत ही आसान नजर आ रही है। कांग्रेस और एनसीपी के उम्मीदवार ने एन वक्त पर अपना नामांकन वापस ले लिया। पिछली बार कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके वाखला भारतसिंह इस बार आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। वे आप के टिकट में फिर मैदान में हैं। ऐसे में इस बार सीधा मुकाबला आप और भाजपा के बीच हो गया है।
झालोद सीट में पानी की बड़ी समस्या
झालोद सीट पर भाजपा और कांग्रेस की टक्कर देखने को मिल रही है। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक अनुसूचित जनजाति की आबादी है। यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। 1985 से लगातार कांग्रेस यहां से जीत रही है। भाजपा के कई प्रयासों के बाद साल 2002 में इस सीट पर भगवा फहराया। लेकिन 2012 के चुनावों में कांग्रेस के मितेश भाई ने भाजपा प्रत्याशी बड़े अंतर से हरा दिया।
जबकि 2017 में कटारा भावेश भाई ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस बार कांग्रेस की तरफ से मितेश भाई फिर मैदान में हैं। जबकि भाजपा की ओर से महेश भाई भूरिया मैदान में हैं। झालोद में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से अलग भीलिस्तान की मांग की जा रही है। झालोद के सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे गराडू गांव में पानी की समस्या को लेकर लगातार आवाज उठती रही है। भीलिस्तान की मांग मुख्य रूप से बीटीपी यानी इंडियन ट्राइबल पार्टी कर रही है।
लिमखेडा भाजपा का गढ़
लिमखेडा विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है। यहां से भाजपा ने शौलेश भामौर को पार्टी ने मैदान में उतारा है। वे दूसरी बार चुनावी मैदान में है। जबकि कांग्रेस ने रमेश गोंदिया को टिकट दिया है। 2017 में भाजपा के शौलेश भामौर चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के तडवी महेश भाई को 19314 वोटों से हराया था। इस सीट पर इससे पहले भाजपा के विधायक थे। 1990 में जनता दल, 1995 में भाजपा, 1998 में कांग्रेस, 2002 में भाजपा, 2007 में कांग्रेस के उम्मीदवार यहां से जीते। 2012 में भी यहां भाजपा को जीत हासिल हुई थी।
2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई फतेपुरा सीट
दाहोद जिले की फतेपुरा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। यह सीट भाजपा का गढ़ कही जाती है। यह सीट साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। 2017 के चुनाव में जिले की फतेपुरा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला देखने को मिला था।
इस सीट पर अब तक सिर्फ दो विधानसभा चुनाव हुए हैं। दोनों ही बार भाजपा को जीत मिली है। रमेश कटारा जिले की फतेपुरा सीट से दूसरी बार चुने गए युवा विधायक हैं। इस बार भी रमेश कटारा मैदान में है। उनके सामने कांग्रेस के रघु मछार मैदार में उतरे थे। पिछली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। टिकट नहीं मिलने से नाराज गोविंद भाई ने कांग्रेस आप का दामन थाम लिया। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी के नुकसान की संभावना बढ़ गई है, जबकि भाजपा की राह आसान हो गई है।