माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के मकड़जाल में ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार फंस चुके हैं। इन कंपनियों की कार्यप्रणाली पुराने जमाने के साहूकारों से भी जटिल बताई जाती है। आसानी से कर्ज मिलने की लालच में जरूरतमंद ग्रामीण इनकी हर बात मानते चले जाते हैं, मगर एक बार रकम ले लेने के बाद अदा करने में उनकी उम्र बीत जाती है। बाद में किस्त जमा न होने पर परिवार को प्रताड़ित करते हैं। ऐसी घटना कलवारी क्षेत्र के भंगुरा में सामने आ चुकी है। जिसमें एजेंटों के उत्पीड़न से आजिज आकर एक युवक ने फंदा लगाकर जान दे दी थी।
जिले में विभिन्न नामों से दर्जन भर से ज्यादा कंपनियां कस्बों में कार्यालय खोलकर अपने एजेंट के जरिये मजदूर वर्ग का समूह बनाकर न्हें लोन देने का कार्य कर रही हैं। इलाज, जरूरत का सामान खरीदने, शादी-ब्याह या अन्य आवश्यकता होने पर गरीब तबका यह सोचकर उनसे लोन ले लेता है कि धीरे-धीरे कमाई करके किस्त भर देंगे।
भारी भरकम ब्याज के कारण वह समय से किस्त अदा नहीं कर पाता है। जानकार लोगों का कहना है कि ऋण स्वीकृत होने के बाद रकम का एक हिस्सा प्रोसेसिंग चार्ज व बीमा के नाम पर काट लिया जाता है। यानी अगर किसी का 30 हजार रुपये ऋण स्वीकृत हुआ तो उसके हाथ में बमुश्किल 24-25 हजार रुपये ही आते हैं।
कलवारी क्षेत्र के भंगुरा निवासी दिलीप ने घर बनवाने के लिए दो-तीन समूह से लोन ले लिए। किस्त का दबाव बढ़ने पर वह दिल्ली कमाने चला गया। इधर, घर पर पत्नी रीना को समूह की किस्त जमा करने के लिए उनके एजेंट परेशान करने लगे। 12 अगस्त को दिलीप दिल्ली से घर आया तो पत्नी ने समूह की किस्त जमा करने को कहा। इसी बात पर दोनों में कहासुनी हो गई। इससे नाराज होकर पत्नी मायके चली गई। इसी बीच पैसा न देने के कारण समूह के सदस्य उसके घर पहुंचे और उसके घर से गैस सिलिंडर, गैस चूल्हा तथा टीन शेड आदि उठाकर ले जाने गए। माना जा रहा है कि इसी उधेड़बुन में उसने गांव के बाग में फंदा लगा कर जान दे दी।
जानकारी में बताया गया है कि लोन देने की आड़ में पहले तो ये लोग ऐसे लोगों का चयन करते हैं जो अनपढ़ हों और आसानी से उनके जाल में फंस जाएं, जिन्हें फाइनेंस के नियम कानून का ज्ञान न हो। इसके बाद उन्हें लोन देने के नाम पर फॉर्म से अतिरिक्त कई ऐसे कोरम पूरा कराते हैं, जो उन्हें समझ में ही नहीं आती, जिसमें अंग्रेजी भाषा का फॉर्म भी शामिल होता है।
लोग बिना पढ़े ही अपने अंगूठा और हस्ताक्षर कर देते हैं, जिसका पूरा फायदा ब्याज पर लोन देने वाले लोग उठाते हैं। लोन देने के नाम पर समूह के सदस्यों से इन लोगों का हस्ताक्षर किया हुआ ब्लेंक चेक भी अपने पास बतौर गारंटी के रूप में रख लेते हैं। बाद में किस्त देने के नाम पर ऐसा ब्याज राशि भी जोड़ी जाती है, जो शासन के मापदंडों के विपरीत होती है।
इस कार्य में महिलाओं से ब्याज के रूप में मोटी रकम वसूली जा रही है तथा उनका आर्थिक शोषण किया जा रहा है। इन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने महिलाओं के छोटे-छोटे समूह बनाकर उनकी जरूरतों की पूर्ति के लिए लोन बांट रखे हैं, जिस पर 24 से 30 प्रतिशत तक ब्याज वसूला जा रहा है। यानी दो से ढाई प्रतिशत महीने की दर से ब्याज लेते हैं।
महिला सशक्तीकरण का नारा लगाने वाली इस तरह की कंपनियां आम तौर पर महिलाओं के नाम पर कर्ज देती हैं। उनकी दलील होती है कि पुरुष दुरुपयोग कर सकता है। मगर कर्ज स्वीकृत करने के लिए पति-पत्नी दोनों की फोटो ली जाती है। दोनों से हस्ताक्षर कराए जाते हैं। उसके घर, चल-अचल संपत्ति का सर्वे कराया जाता है, ताकि किश्त न मिलने पर वे इसकी रिकवरी संपत्ति से कर सकें।
एडीएम कमलेश चंद्र के अनुसार माइक्रोफाइनेंस कंपनी मूल रूप से वित्तीय संस्थाएं हैं जो ऋण, ऋण या बचत के रूप में छोटे पैमाने पर वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं। इन कंपनियों को छोटे व्यवसायों के लिए ऋण प्रणाली को आसान बनाने के लिए पेश किया जाता है क्योंकि उनकी जटिल प्रक्रिया के कारण उन्हें बैंकों से ऋण नहीं मिलता है। यह कंपनियां कंपनी एक्ट 1956 के तहत पंजीकृत होती हैं। जो रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों पर काम करती है। इसमें अगर कोई नियम का उल्लंघन करने की शिकायत मिलती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।