Maharaj Review : यशराज बैनर तले बनी फिल्म ‘महाराज’ ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। फिल्म की कहानी १८६२ के प्रसिद्ध ‘महाराज लिबेल केस’ पर आधारित है। फिल्म का निर्देशन सिद्धार्थ मल्होत्रा ने किया है और मेरी समझ से बहुत घटिया किया है।
मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहे जाने वाले आमिर खान के बेटे जुनैद की यह पहली फिल्म है। अपनी पहली ही फिल्म में जुनैद एक अभिनेता के रूप में मुँह के बल गिरे हैं। चेहरे पर एक्सप्रेशन का अभाव, डायलॉग बोलने की जल्दी, तेज आवाज में बोलते ही पिच खराब हो जाना जैसी बुनियादी खामियों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जुनैद को कैमरे के सामने अभी और अभ्यास की जरूरत है। को एक्टर के रूप में जयदीप अहलावत का होना ही इस फिल्म को देखने की इकलौती वजह है।
यह फिल्म पत्रकार करसनदास मूलजी के जीवन संघर्षों से प्रेरित है जो महिलाओं की शिक्षा और उनके जीवन में सुधार के लिए निरंतर लड़ते रहे। मूलजी के संघर्ष को अधिक विस्तार से दिखाए जाने की आवश्यकता थी जबकि इनकी लड़ाई को समय में बाँधकर छोटा कर दिया गया है। फिल्म की कहानी इतिहास के पन्नों से ली गई है जिसमें बदलाव का ज्यादा स्कोप नहीं है लेकिन कहानी को बहुत संक्षिप्त रूप से और जल्दी जल्दी में दिखाये जाने की वजह से इसका महत्त्व कम हो गया है।
सवा दो घंटे से भी कम समय की इस फिल्म को एक वेब सीरीज के रूप में दिखाया जा सकता था। करसनदास के जीवन पर और प्रकाश डाला जा सकता था। इसके साथ ही बाबा के चरित्र का और स्याह पक्ष आना बाकी रहा। अदालत में चलने वाली बहस को अधिक विस्तार से और तार्किक रूप से दिखाए जाने की आवश्यकता थी। दोनों पक्षों की दलीलों में दम दिखना चाहिए था।
धार्मिक मामलों और रीति रिवाजों में हस्तक्षेप के बावजूद पब्लिक का विरोध नगण्य दिखाया गया है जबकि वास्तव में यह सब कुछ इतना आसान नहीं रहा होगा। इतने बड़े स्केल पर हुए सुधार को कम समय में दिखा लेने की कोशिश करने में सिद्धार्थ बुरी तरह फेल हुए हैं। कमजोर निर्देशन और फीकी ऐक्टिंग ने फिल्म को एक बार देखने योग्य भी नहीं छोड़ा है। फिल्म में कुछ कुछ डायलॉग बहुत बढ़िया और मारक हैं। स्नेहा देसाई इससे पहले लापता लेडीज में अपना लेखन कौशल दिखा चुकी हैं। फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इतिहास के पन्नों में दर्ज एक महान क्रांतिकारी सुधारक और पत्रकार की कहानी को बड़े स्केल पर और अधिक विस्तार पूर्वक दिखाया जा सकता था जिसमें उनकी जीवन यात्रा, संघर्ष, समाज का विरोध, शिक्षा का प्रभाव और क्रमिक सुधार शामिल हो सकते थे। समय को सीमित करके ना सिर्फ फिल्म के साथ अन्याय किया गया है बल्कि उनके संघर्ष को भी छोटा किया गया है।
लेख : सचित्र मिश्र