गोरखपुर। विश्व आयुर्वेद मिशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राजकीय आयुर्वेद कॉलेज हंडिया, प्रयागराज के पूर्व प्राचार्य प्रो. (डॉ.) जीएस तोमर ने कहा कि मधुमेह की चिकित्सा में मात्र शर्करा का नियंत्रण ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए बल्कि किडनी, रेटिना, हृदय तथा नाड़ियों पर पड़ने वाले कुप्रभाव से भी शरीर की रक्षा करना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शर्करा नियंत्रण से लेकर शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले प्रभावों से बचाने तक आयुर्वेद दवाएं अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो रही है।
डॉ. तोमर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय आरोग्यधाम गोरखपुर के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में विशिष्ट व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद वांग्मय में मधुमेह (डायबिटीज) का वर्णन हजारों वर्षों पहले से है। वैदिक कालीन पैपिल्यादि संहिता में ‘प्रमेहणां तां विदुर उभयोरमेहनश्च’ कहकर इसके अस्तित्व को स्वीकार किया है । उसके बाद उपनिषद काल, पुराणकाल तथा संहिता काल में मधुमेह के लक्षण व निदान का विस्तृत वर्णन मिलता है। प्राचीन महर्षियों ने अपनी दिव्य दृष्टिरूपी उपकरणों से इसके सरलतम निदान का तरीका भी सुझाया है।
डॉ. तोमर ने कहा कि जब आधुनिक लैब परीक्षणों में रोगी के मूत्र में बैनिडिक्ट सोल्यूशन शर्करा को अनुपस्थित बताता है उसी समय रोगी, मूत्र में चींटियां लगने की बात कहकर मधुमेह की सबसे प्रथम अवस्था मेटाबॉलिक सिन्ड्रोम की तरफ इशारा करता है। यही आयुर्वेद चिकित्सा का प्रथम पायदान है। इस अवस्था में न तो रोगी की रक्त शर्करा ही बढ़ी होती है और न ही उसके मूत्र के साथ शर्करा निकलती है। केवल रोगी को डिसलिपिडीमिया अर्थात हानिकारक कॉलेस्ट्रोल की वृद्धि तथा लाभदायक कॉलेस्ट्रोल की कमी मिलती है साथ ही सेंट्रल ओबेसिटी यानी पेट बढ़ा हुआ मिलता है। इस अवस्था में आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से चन्द्रप्रभा वटी, मेदोहर गुग्गुल एवं फलत्रिकादि क्वाथ का प्रयोग श्रेयस्कर है । इससे डायबिटीज अपनी दूसरी अवस्था प्री-डायबिटीज तक नहीं पहुंच पाता है। उन्होंने कहा कि प्री डायबिटीज की स्थिति में पहुंचे मरीजों को जिनकी फास्टिंग ब्लड शुगर 126 मिग्रा से कम तथा पीपी ब्लड शुगर 200 मिग्रा से कम हो, उनमें डायबकल्प प्लस एवं बीजीआर-34 जैसी आयुर्वेदिक औषधियों से बहुत उत्सावर्धक परिणाम मिलते हैं। इससे पचहत्तर प्रतिशत से अधिक रोगियों को डायबिटीज की तीसरी अवस्था तक पहुंचने से रोका जा सकता है।
डॉ. तोमर ने बताया कि तीसरी अवस्था में जब फास्टिंग ब्लड शुगर 126 मिग्रा से अधिक एवं पी पी ब्लड शुगर 200 मि. ग्रा. से अधिक हो उस अवस्था में बसंत कुसुमाकर, बीजीआर-34 या डायबकल्प के साथ साथ एम्रीप्लस ग्रेन्यूल्स या मधुरक्षक चूर्ण रात्रि में सेवन कराने से अत्यन्त उत्साहजनक परिणाम मिलते हैं। ऐसे रोगियों को मात्र उपयुक्त आयुर्वेदिक औषधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संयमित जीवनशैली, नियंत्रित आहार, मिलेट्स का आहार में प्रयोग, नियमित बलार्ध व्यायाम, शवासन, निष्पंदभाव जैसे विश्रांतिकर योगासन के साथ साथ आयुर्वदिक औषधियों के प्रयोग से मधुमेह पर नियंत्रण पाया जा सकता है। व्याख्यान से पूर्व गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के प्राचार्य डॉ. मंजूनाथ एनएस ने डा. तोमर का स्वाग किया। संचालन डा. प्रज्ञा सिंह ने किया।
आयुर्वेद के नियमों का पालन कर बच सकते हैं कई रोगों से
डॉ. जीएस तोमर ने महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के फार्मेसी संकाय में भी व्याख्यान दिया। फार्मेसी संकाय आैर आरोग्य भारती गोरक्ष प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस व्याख्यान में उन्होंने स्वस्थ जीवन शैली विषय पर विद्यार्थियों को आयुर्वेद के नियमों की जानकारी दी। कहा कि आयुर्वेद में बताए गए नियमों का पालन करके बहुत से रोगों से बचा जा सकता है। डा. तोमर ने आयुर्वेद के हिसाब से आहार विहार अपनाने, सुबह जल्दी उठने, शाम को जल्दी भोजन करने तथा समय से आैर पर्याप्त नींद लेने की सलाह दी। यहां भी उन्होंने मधुमेह नियंत्रण को लेकर अपने चिकित्सकीय अनुभव को साझा किया। व्याख्यान के समापन पर आभार ज्ञापन पूजा जायसवाल ने किया।