बलिया- भारत की आजादी में बलिया अपना एक अलग स्थान रखता है । जनपद का ज़र्रा ज़र्रा गौरव व गौरवशाली इतिहास की गाथा गाता है । बलिया जनपद ने कई वीर क्रांतिकारीयों को जन्म दिया है जिनमें सबसे रोशन नाम है मंगल पाण्डेय का जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के पहले समर 11857 के विद्रोह का बिगुल फूंका था। बलिया इसी वीर सपूत की जन्मभूमि है और आज तक अपने इस वीर योद्धा के अदम्य साहस के कारण जिसका नाम रोशन है।
मंगल पाण्डेय को भारत की आजादी के नायक की उपाधि भी दी जाती है । मंगल पाण्डेय ने 1857 में बंगाल के बैरकपुर में अंग्रेज अफसर को गोली मारकर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध बगावत का बिगुल फूंका था । मंगल पाण्डेय का जन्म बलिया जनपद के सदर तहसील क्षेत्र के नगवा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में 30 जनवरी सन् 1831 ई० में हुआ था । मंगल पाण्डेय के पिता का नाम सुदिष्ट पाण्डेय व माता का नाम जानकी देवी था । मंगल पाण्डेय के पर पौत्र रघुनाथ पाण्डेय पूर्व में एक केंद्रीय विद्यालय में प्रधानाचार्य के रूप में सेवा दे चुके हैं और 2006 में सेवानिवृत्त होने के बाद आज भी नगवा ग्राम सभा में स्थित पुराने घर में रहते हैं ।
नगवा गांव में म़गल पाण्डेय के नाम पर शहीद मंगल पाण्डेय स्मारक ट्रस्ट भी है । ट्रस्ट के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी ने बताया कि शहीद मंगल पाण्डेय के नाम पर नगवा गांव में शहीद मंगल पाण्डेय इण्टर कालेज, शहीद मंगल पाण्डेय राजकीय महिला महाविद्यालय, शहीद मंगल पाण्डेय महाविद्यालय, संग्रहालय व पुस्तकालय जैसी संस्थाएं संचालित होती हैं जिससे सैकड़ों छात्र – छात्राओं को शिक्षा दान मिलता है । उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में शहीद मंगल पाण्डेय स्मारक स्थल के जीर्णोद्धार का कार्य भी सरकार द्वारा कराया जा रहा है । उन्होंने मांग की है कि बलिया में शहीद मंगल पाण्डेय के नाम पर एक मेडिकल कालेज की स्थापना भी की जानी चाहिए जिससे बलिया के छात्र – छात्राओं को मेडिकल जगत में भी उच्च शिक्षा आसानी से प्राप्त हो सके ।
मंगल पाण्डेय के पर पौत्र रघुनाथ पाण्डेय ने वार्ता से बातचीत में बताया कि कालान्तर में आर्थिक तंगी के कारण शहीद मंगल पाण्डेय ने बंगाल प्रांत के बैरकपुर में बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 34वीं बटालियन में एक सिपाही के रूप में नौकरी की शुरुआत की थी । मंगल पाण्डेय को 29 मार्च 1857 को जानकारी मिली कि नई राइफल में लगने वाली कारतूस पर गाय और सुअर की चर्बी लगी है । उस समय कारतूस को लोड करने के लिए दांत से खींचना पड़ता था । धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण मंगल पाण्डेय को ये नागवार गुजरा ।
मंगल पाण्डेय ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया । उन्होंने विवाद के बाद अंग्रेज अफ़सर को गोली मारकर उसे घायल कर दिया । जिसके बाद उनके विरुद्ध फौजी मुकदमा कायम करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । जिसके बाद सभी सैनिकों में विद्रोह शुरू हो गया । विद्रोह को दबाने के लिए 6 अप्रैल 1857 को सुनाई के बाद अंग्रेजी अदालत ने मंगल पाण्डेय को फांसी की सजा सुनाई । सजा सुनाने के बाद मंगल पाण्डेय को फांसी देने के लिए जल्लादों की तलाश की जाने लगी पर कोई भी जल्लाद मंगल पाण्डेय को फांसी देने को तैयार नहीं था । अंत में अंग्रेजी प्रशासन ने बंगाल से दो जल्लादों को गुमराह कर बुलाया व आनन – फानन में 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई ।
मंगल पाण्डेय की शहादत अंग्रेजी शासन के विरुद्ध क्रांति की चिंगारी साबित हुई व शहादत के एक माह बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में क्रान्ति की शुरुआत हो गई । मंगल पाण्डेय की फांसी व कारणों का पता चलने के बाद मेरठ छावनी के सिपाहियों ने भी बगावत कर दी जो आजादी की लड़ाई में मिल का पत्थर साबित हुई और आजादी की चिनगारी पूरे देश में लपटों की तरह फ़ैल गई व देश में 1857 की क्रांति नायक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई व तात्या टोपे, आरा के कुंअर सिंह जैसे वीर सपूत आजादी की लड़ाई में कूद पड़े व एक लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त सन् 1947 को देश आजाद हुआ । रघुनाथ पाण्डेय ने बताया कि वे खुद को मंगल पाण्डेय का वंशज होने पर बहुत की गौरवान्वित महसूस करते हैं व देश के नौजवानों को मंगल पाण्डेय से सीख लेकर देश के प्रति अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से योगदान देना चाहिए।
मंगल पाण्डेय की जयंती को लेकर भी दो मत है रघुनाथ पाण्डेय बताते हैं कि मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी सन् 1831 को हुआ था लेकिन इंटरनेट पर उनकी जयंती 19 जुलाई 1827 अंकित है । उन्होंने बताया कि बलिया में मंगल पाण्डेय की जयंती 30 जनवरी को ही मनाई जाती है । इंटरनेट वाली जयंती गलत है ।