लखनऊ, 14 सितम्बर को केंद्र सरकार ने पांच राज्यों की 12 जातियों को एसटी का दर्जा दे दिया। इसमें यूपी की गोंड समेत उसकी पांच उपजातियों को शेष चार जिलों में एसटी में शामिल करने का अधिकार मिल गया।
ऐसे में सपा ने केवट समेत 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की आवाज बुलंद कर दी है।
वहीं अंदर खाने में योगी सरकार भी सपा के इस पुराने मुद्दे को साध कर एक बड़ा वोटर अपने पाले में खींचने जुगत में बताई जा रही है। अब देखने यह है कि आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा-सपा में मची होड़ लोकसभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है।
कहां पर फंस रहा मसला
उत्तर प्रदेश में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ ऐसी 17 अति पिछड़ी जातियां हैं, जिन्हें संविधान में तो अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया।
मगर तकनीकी व राजनीतिक उलटफेर के चलते यह अनुसूचित जाति वर्ग की सूची से बाहर हो गईं।
अनुसूचित संविधान आदेश 1950 के आधार पर 1991 तक इन्हें अनुसूचित जाति का आरक्षण मिला और उसके बाद से इनका हक राजनीतक दलों के लिए एक ‘मुद्दा’ बनकर रह गया, जो चुनावों के दौरान फुटबाल की तरह राजनीतिक चौखट और कोर्ट के कठघरों तक भटकता रहा।
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