नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पेगासस के अनधिकृत इस्तेमाल की पड़ताल के लिए उसके द्वारा नियुक्त किये गये तकनीकी पैनल ने जांच किये गये 29 मोबाइल फोन में से पांच में कुछ ‘‘मालवेयर’’ पाया है, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि ये (मालवेयर) इजराइली स्पाइवेयर के चलते थे।
किसी कम्प्यूटर या मोबाइल फोन तक अनधिकृत पहुंच हासिल करने, उसे बाधित या नष्ट करने के मकसद से विशेष रूप से बनाए गए सॉफ्टवेयर को ‘‘मालवेयर’’ कहा जाता है।
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर. वी. रवींद्रन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद इस बात का भी उल्लेख किया कि केंद्र सरकार ने पेगासस मामले की जांच में सहयोग नहीं किया।
उच्चतम न्यायालय ने नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की लक्षित निगरानी के लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा इजराइली स्पाइवेयर के इस्तेमाल के आरोपों की पिछले साल जांच का आदेश दिया था। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने पेगासस विवाद की जांच के लिए तकनीकी और निगरानी समितियां गठित की थी।
बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि पेगासस मुद्दे पर विपक्ष का हमला एक ‘‘प्रेरित अभियान’’ था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कमजोर करने के लिए लक्षित था। भाजपा ने कांग्रेस और इसके नेता राहुल गांधी से माफी मांगने की भी मांग की।
वहीं, कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि जांच में सहयोग नहीं कर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने पेगासस का इस्तेमाल किया। विपक्षी दल ने उनके खिलाफ उच्चतम न्यायालय द्वारा कड़ी कार्रवाई किये जाने की मांग की।
राहुल गांधी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के साथ प्रधानमंत्री और उनकी सरकार का असहयोग इस बात की स्वीकारोक्ति है कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ था और वे लोकतंत्र को कुचलना चाहते हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘उन्होंने (समितियों ने) कहा है कि भारत सरकार ने सहयोग नहीं किया। आप यहां वही रुख अपना रहे हैं, जो आपने वहां अपनाया था।’’
पीठ के सदस्यों में प्रधान न्यायाधीश रमण के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं।
शीर्ष न्यायालय ने तकनीकी पैनल की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि यह ‘‘थोड़ी चिंताजनक’’ है, क्योंकि जांच के लिए तकनीकी समिति के पास जमा किए गए 29 फोन में से पांच में ‘‘कुछ तरह का मालवेयर’’ पाया गया, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ‘‘ये पेगासस के कारण हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जहां तक तकनीकी समिति की रिपोर्ट की बात है ऐसा प्रतीत होता है कि जिन व्यक्तियों ने अपने मोबाइल फोन दिये थे उन्होंने अनुरोध किया है कि रिपोर्ट साझा नहीं की जाए…ऐसा लगता है कि करीब 29 फोन दिये गये थे और पांच फोन में, उन्होंने कुछ ‘मालवेयर’ पाया लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यह पेगासस का ‘मालवेयर’ है…।’’
पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति रवींद्रन की रिपोर्ट में नागरिकों के निजता के अधिकार की सुरक्षा, भविष्य में उठाए जा सकने वाले कदमों, जवाबदेही, निजता की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन और शिकायत निवारण तंत्र पर सुझाव दिए गए हैं।
न्यायालय ने कहा कि वह निगरानीकर्ता न्यायाधीश रवींद्रन की रिपोर्ट में कुछ सुधारात्मक उपायों का सुझाव दिया गया है और इनमें एक यह है कि ‘‘मौजूदा कानूनों में संशोधन तथा निगरानी पर कार्यप्रणाली और निजता का अधिकार होना चाहिए।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक बड़ी रिपोर्ट है। देखते हैं कि हम कौन सा हिस्सा मुहैया करा सकते हैं।’’ साथ ही, पीठ ने कहा कि रिपोर्ट जारी नहीं करने का अनुरोध भी किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ये सब तकनीकी मुद्दे हैं। जहां तक न्यायमूर्ति रवींद्रन की रिपोर्ट की बात है, हम इसे वेबसाइट पर अपलोड करेंगे।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और राकेश द्विवेदी ने पीठ से वादियों के लिए ‘‘संपादित रिपोर्ट’’ जारी करने की अपील की।
रिपोर्ट का जिक्र करते हुए पीठ ने जब कहा कि केंद्र ने सहयोग नहीं किया है, इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
न्यायालय अब चार सप्ताह बाद विषय की सुनवाई करेगा।
इस मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग छिड़ गई। भाजपा ने माफी मांगने की कांग्रेस से मांग की और आरोप लगाया कि मोदी एवं उनकी सरकार के प्रति विपक्षी दल के मन में इतना अधिक विद्वेष है कि उसने पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए झूठ का सहारा लिया, लेकिन उसके झूठ पर से पर्दा हटने के बाद उसका जनाधार और घट गया।
वहीं, कांग्रेस ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त ‘पैनल’ के साथ केंद्र की मोदी सरकार का ‘‘असहयोग’’ इस बात की स्वीकारोक्ति है कि उसके पास ‘‘छिपाने के लिए कुछ चीज’’ थी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस जासूसी पर उनकी पार्टी को उपदेश नहीं दे और अपने खुद के सहकर्मियों को लक्षित तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के आरोपों का हवाला दिया।
कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कहा, ‘‘सब जानते हैं कि इस हथियार का इस्तेमाल किया गया और इसने लोकतंत्र को दागदार किया। यह हथियार कानून और संविधान के खिलाफ है। वे (सरकार) जवाब कैसे दे सकते हैं। कई बार जवाब नहीं देना भी जवाब होता है। सरकार ने (जवाब नहीं देकर) साफ कर दिया है कि उन्होंने लोकतंत्र के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया।’’
उन्होंने यहां कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा कि सरकार ने मौन रहकर साफ कर दिया है कि उसने राहुल गांधी, अन्य विपक्षी नेताओं, वैज्ञानिकों, चुनाव आयुक्तों, उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार, सिविल सोसाइटी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय उत्तर नहीं देने को उत्तर ही मानेगा और इस मामले में सरकार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगा। हम पहले दिन से पूछ रहे हैं कि सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल क्यों किया और किस कानून के तहत किया।’’
तकनीकी समिति में साइबर सुरक्षा, डिजिटल फोरेंसिक, नेटवर्क और हार्डवेयर पर तीन विशेषज्ञ शामिल हैं। इस समिति से यह जांच करने और यह पता लगाने को कहा गया कि क्या पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल नागरिकों की जासूसी के लिए किया गया और उनकी जांच की निगरानी न्यायमूर्ति रवींद्रन करेंगे।
समिति के सदस्यों में नवीन कुमार चौधरी, प्रभारन पी. और अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं।
निगरानीकर्ता पैनल की अध्यक्षता न्यायमूर्ति रवींद्रन ने की। तकनीकी पैनल की जांच की निगरानी में उनकी सहायता भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी आलोक जोशी और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ संदीप ओबराय ने की।
शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि जांच समिति को इस बारे में पड़ताल करने की शक्तियां प्राप्त होंगी कि केंद्र ने पेगासस के स्पाइवेयर के जरिये भारतीय नागरिकों के व्हाट्सऐप अकाउंट हैक किये जाने के बारे में 2019 में खबरें प्रकाशित होने के बाद क्या कदम उठाये या क्या कार्रवाई की।
साथ ही, क्या केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी सरकारी एजेंसी ने भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए पेगासस के स्पाइवेयर को हासिल किया था।
उल्लेखनीय है कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने दावा किया था कि पेगासस स्पाइवेयर के जरिये कथित जासूसी के संभावित लक्ष्यों की सूची में 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर शामिल थे।