Rajasthan अध्यापक छैल सिंह राजस्थान के जोधपुर संभाग के जालोर जिले के रहने वाले हैं छैल सिंह पेशे से एक शिक्षक हैं. वह जालोर जिले के सुराणा गांव में 16 साल से निजी स्कूल को संचालित कर रहा है जिसका नाम सरस्वती विद्या मंदिर है।
पानी की मटकी अध्यापक छैल सिंह के लिए अलग से रखा हुआ था. बच्चे बताते हैं कि इस मटकी से किसी को पानी पीने की इजाजत किसी को नहीं होती थी. मटकी के पानी को सिर्फ अध्यापक छैल सिंह ही पीता था।
इंद्र मेघवाल नाम के बच्चे ने बीते 20 जुलाई को स्कूल में रखी पानी की मटकी से पानी पी लिया था। इस पर छैल सिंह ने उसकी खूब पिटाई की. मारपीट में बच्चा गंभीर रूप से घायल हो गया था और फिर इलाज के दौरान बच्चे की मृत्यु हो गई।
बता दें कि पुलिस ने शिक्षक छैल सिंह को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है. पुलिस और शिक्षा विभाग दोनों मामले की जांच में जुटे हुए हैं।
भारत में ना जाने कितने सरस्वती विद्या मंदिर है जो मनुवादी सोच और संघ के नियमों पर चल रहे हैं और जो जातिवाद का समर्थन करते है जिसमें संकीर्ण मानसिकता के अध्यापक अपनी मनमानी करते हैं और दलित समाज के छात्रों के साथ बर्बरता का व्यवहार करते हैं।
ऐसे में शोषित वंचित समाज के लोगों को ऐसे विद्यालयों का विरोध करना चाहिए एवं अपने बच्चों को उसमें पढ़ने के लिए भेजना ही नहीं चाहिए जिसमें छैल सिंह की तरह अलग-अलग नामों से अध्यापक है और जो समय समय पर अपनी बर्बरता से यह साबित करते हैं कि वह ही सर्वश्रेष्ठ है।
शोषणकारी प्रवृत्ति का है सवर्ण समाज
सवर्ण समाज की मनोवृति में मनुस्मृति बसी हुई है। दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग का शोषण करना उसे एक आम बात लगती है। बेगारी करवाना, नीचा दिखाना, बेइज्जत करना, कोई अपराध नहीं माना जाता।
एक सवर्ण न्यायाधीश के तौर पर, एक अफसर के तौर पर, एक नेता के तौर पर जातिगत भेदभाव करता है। एक सवर्ण न्यायाधीश सवर्ण आरक्षण की छूट देता है तो वहीं पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर रोक लगाता है। ऐसी तमाम घटनाएं देशभर में हो रही हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि हर स्तर पर सवर्ण समाज, भेदभाव करता है।
मीडिया के क्षेत्र में भी दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के सवालों पर बात करने वाला सवर्ण ही होता है। यानी दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग व मुसलमान सभी की अगुवाई सवर्ण करता है। वंचित तबके को अपनी बात रखने, अगुवाई करने से वंचित रखता है। एक आम सवर्ण दलितों को घोड़ी पर चढ़ने नहीं देता, जूते में मूत्र पिलाता है, गोबर खिलाता है।
मॉब लिंचिंग एक आम बात हो गई है। आखिर इनके बीच जाकर समाज सुधार कौन करेगा? क्यों इनकी बीच समाज सुधार का बीड़ा नहीं उठाया जाता है। यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।