75 सालों में पहली बार सरकार की नीति का बचाव करने के लिए सेना के तीनों प्रमुखों को उतारा गया है : मल्लिकार्जुन खड़गे
रविवार को भारतीय सेनाओं के तीनों अंगों ने क़रीब एक घंटे की प्रेसवार्ता में सरकार की अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे नौजवानों से साफ़-साफ़ शब्दों में बात की।
इस प्रेस वार्ता में रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी, वायुसेना के एयर मार्शल एस के झा, नौसेना के वाइस एडमिरल डीके त्रिपाठी और थलसेना के एडजुटेंट जनरल बंसी पोनप्पा शामिल थे।
इस प्रेस वार्ता को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया है कि 75 सालों में पहली बार सरकार की नीति का बचाव करने के लिए सेना के तीनों प्रमुखों को उतारा गया है जबकि रक्षा और गृह मंत्रालय चुप हैं।
इस प्रेस वार्ता पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं, “ऐसा लगा लगा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ नहीं था, धमकाने के सिवा , उन्हें हिंसा की ज़्यादा फ़िक्र लग रही थी, बजाय इसके कि योजना की बारीकियों को समझाया जाए।”
मनोज जोशी के मुताबिक़ प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मीडिया के लोगों ने भी सही सवाल नहीं पूछे, “उन्हें भी सिस्टम ने बुल्डोज़ कर दिया है.”
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान के मुताबिक़ ये कहना कि विपक्ष ने युवाओं को बहका दिया है, ये युवाओं की बेइज़्ज़ती है। वो कहते हैं, “आज का युवा अच्छा जानकार है, न विपक्षी दल उसे बहका सकते हैं, न ही प्रॉपेगैंडा.”
रिटायर्ड मेजर जनरल श्योनन सिंह कहते हैं, “मुझे इस प्रेस कान्फ्रेंस का उद्देश्य समझ में नहीं आया ,क्या इसका मक़सद सरकार का मज़बूत रवैया पेश करना था और अगर सरकार का रवैया सख़्त है, सैन्य अधिकारी क्यों समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये अच्छा या बुरा फ़ैसला है?”
“इस प्रेस कान्फ़्रेंस में प्रदर्शन करने वाले लोगों को धमकाने की कोशिश की गई। देश में विषयों से निपटने का ये कोई तरीक़ा नहीं है। ये ऐसा था कि आप किसी को सबक सिखाना चाहते हैं ,भारत किसी का उपनिवेश नहीं है। ये एक आज़ाद देश है, जहाँ लोगों की अपनी राय है. आपको उन्हें विश्वास दिलाना होगा.”
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज काद्यान याद दिलाते हैं कि करगिल युद्ध के दौरान भी प्रेस ब्रीफ़िंग देने का काम एक कर्नल को सौंपा गया था। वो कहते हैं, “ये अभूतपूर्व है कि स्कीम को प्रसारित करने का काम वर्दी वाले लोगों को सौंपा गया है। ये रक्षा मंत्रालय का स्कीम है। इसकी घोषणा रक्षा मंत्री ने की। इसे प्रसारित करने का काम रक्षा मंत्रालय के पीआरओ को करना चाहिए न कि वर्दी पहनने वाले व्यक्ति को.”
रक्षा विषयों पर लंबे समय से लिखने वाले पत्रकार मनोज जोशी के मुताबिक़ कई लोगों को नहीं पता कि इस स्कीम के लिए सेना ही ज़िम्मेदार थी और अब वो इसकी वकालत में उतर गई है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को लगता था कि बड़ी सेना पर होने वाला खर्च बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है और उसमें कटौती से बचे पैसे को कैपिटल खर्च या नए सामान को ख़रीदने या सुविधाओं को पैदा करने में खर्च किया जा सकता है।
वो कहते हैं, “मिलिट्री इस विचार के साथ आई. वो इस विचार को सरकार के पास ले गई और अब उसे इसके समर्थन में उतरना होगा.”
इनपुट :बीबीसी हिंदी