केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में ज्वॉइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल के पदों को भरने के लिए सरकार “लेटरल इंट्री” का सहारा लेकर कथित तौर पर एक वर्ग विशेष के लोगों को चयन किया। जिसका विवाद रह-रह कर सामने आता रहा। इस प्रक्रिया से “अपनों” को लाभ पहुंचाया जा रहा है, ऐसे आरोप लगते रहे और देखने को भी मिला क्योंकि लेटरल एंट्री जिनको उच्च पदों पर पहुँचाया गया वो एक जाति विशेष से तालुक रखते हैं।
भारत के टॉप 10 सरकारी नौकरी वाले क्षेत्र
- सिविल सर्विस ऑफिसर
- पीएसयू में नौकरी
- विश्वविद्यालय में प्रोफेसर
- डिफेंस सेक्टर
- डॉक्टर
- वैज्ञानिक
- संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा के तहत जॉब
- रेलवे
- बैंकिंग सेक्टर
- पैरा मिलिट्री और पुलिस विभाग
सरकारी नौकरी सुख-सुविधा और सुरक्षित भविष्य के लिए सबकी प्राथमिकता पहली होती है लेकिन वर्षों से शिक्षा कर सामाजिक और भूगोलिक पिछड़ापन के कारण इस पदों पर एक जाति विशेष का कब्ज़ा रहा है। वहीं वर्तमान में जब से सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट को सरकार ने मंजूर किया है, सरकारी और निजी नौकरियों को लेकर फिर बहस सार्वजनिक हो गई है।
कथित तौर पर उच्च वर्ग और जाति धर्म के नाम सदियों से भेद-भाव करने वालों को आज भी पिछड़ा, अनुसूचित जाति और जनजाति अपनी बराबरी पर देखना पसंद नहीं करते हैं इसलिए कोई न कोई तोड़ लगाकर इन सभी नौकरियों पर अपने लोगों को बैठाते हैं या फिर कथित चाल चलकर गरीब और पिछड़े समाज से आने वालों युवको को यहाँ तक पहुंचने से रोकते हैं।
हाल ही में सेना में 4 वर्ष की अग्निपथ योजना पर बवाल लेटरल एंट्री में एक कड़ी जोड़ती –

इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि अन्य सरकारी नौकरियों के उच्च पदों में एक विशेष जाति वर्ग की ही तरह सेना में भी उच्च पदों पर एक विशेष वर्ग जाति के लोगों का कब्जा है क्योंकि वहां पर सीधी भर्ती न होकर जो चयन प्रक्रिया है उसकी तैयारी में ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों का युवा श्याद ही पहुंच पाए, क्योंकि पढ़ाई का माहौल उन्हें नहीं मिलता है।
सेना के निचले पदों पर नौकरी से ग्रामीण और पिछड़े समाज की बदलने लगी थी सूरत
ग्रामीण क्षेत्र के किसान और मजदूर के बेटे का सेना में सिपाही की नौकरी का मुख्य उद्देश्य देश सेवा के साथ खुद के परिवार और सामाजिक, आर्थिक मजबूत करना है। सेना में सिपाही से भर्ती होने वाला युवा नायब सूबेदार या सूबेदार तक पहुंचता था। जिसकी सेवावृत्ति की उम्र 52 वर्ष होती थी।
अग्निपथ योजना से शीर्ष पदों के बाद निम्नपदों पर एक जाति विशेष को कब्जे का खतरा
सदियां गुजर जाने के बाद भले ही देश विकास की राह पर तरक्की करता हो लेकिन देश में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव की घटनाएं आज भी सामने हैं। सरकारी नौकरी की जब बात होती है तो यह चर्चा का विषय बन जाता है क्योंकि नौकरी में आरक्षण होने के बाद भी आरक्षित वर्ग वालों को 70 वर्ष में कोई विशेष लाभ नहीं मिला।
ऐसे में सेना ही एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें ग्रामीण किसान के बच्चे नौकरी पाकर देश सेवा के साथ अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाते थे लेकिन अब लेटरल एंट्री की तरह सरकार ने यहाँ भी ‘अग्निपथ योजना’ लागू कर दी जिस पर बवाल मचा हुआ है।

छात्रों में क्या -क्या डर है ?
- युवाओं का पहला डर है कि सेना में 4 साल नौकरी के बाद जिनकी अस्थाई नियुक्ति होगी उसमें जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है ?
- 4 साल के लिए एक बेहतर सैनिक कैसे तैयार हो सकता है ? जबकि सेना को एक बेहतर सिपाही तैयार करने में 2 से 3 साल लगा जाते है ?
- अगर ऐसा करना ही था तो पहले से चल रही एनसीसी सेवा के तहत भारतीय सेना में सेवा करने का अवसर क्यों नहीं दिया गया ?
- 4 साल की नौकरी के बाद देश की सेवा करने वालों को पेंशन नहीं जबकि राष्ट्र के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की पेंशन उम्र भर रहती है ऐसा क्यों?
सेना नौकरी चुके एक व्यक्ति ने नाम न छपने की शर्त पर बताया है कि धीरे-धीरे अन्य सेना में भी अन्य सेवाओं की तरह निजी हाथों में सौंप दी जाए कहा नहीं जा सकता है। 4 साल की के नाम पर युवाओं में देश रक्षा के प्रति भावना काम हुआ है।
जिन 25 % को स्थाई किया जाएगा वो किसी जाति विशेष के नहीं होंगे, इसकी क्या गारंटी ?
सरकार की विवादित अग्निपथ योजना के अनुसार जो सेना में अग्निवेश भर्ती किए जाएंगे। उसके 25% से अस्थाई तौर पर आगे नौकरी कर सकेंगे। इस तरह सेना में डायविर्सिटी की कमी होगी। अगर सेना विविधिता की कमी होगी तो जाहिर है इतिहास की वो घटनायें दोबार दोहराई जा सकती हैं जिसमें कुछ कुशल सेना के जवान हजारों की सेना पर भारी पड़े हैं।
भारत की विविधता ही एकता और अखंडता का प्रतीक है क्योंकि विभिन्न क्षेत्र से सेना में शामिल हुए युवाओं में अलग-अलग प्रतिभा है जिसके कारण भारत की सेना सबसे मजबूत है लेकिन अब अगर इन कथित ‘विवादित योजनाओं’ के कारण नौकरी में पक्षपात होता है तो यह देश की सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।