जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया आन बाट काहे नहीं आया : जाति धर्म से ऊपर कबीर ने समाज को दिखाया आइना
देशभर में आज सोमवार 14 जून को कबीर दास जयंती मनाई जा रही है। इसे बहुत लोग संत कबीर दास की जयंती भी कहते हैं। कबीर दास एक कवि और एक लोकप्रिय समाज सुधारक थे। उनकी शिक्षाओं और दोहो ने समाज में बहुत बदलाव किया है, इसलिए यह दिन सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
कबीर दास जयंती किस दिन मनाई जाए, इसको लेकर हमेशा ही मतभेद रहा है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार कबीर दास की जयंती ज्येष्ठ पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ के महीने में पूर्णिमा के दिन होनी चाहिए। वहीं ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार कबीर दास जयंती मई या जून के महीने में मनाई जाती है।
खैर, इस साल 14 जून 2022 को कबीर जयंती मनाई जा रही है। कबीर साहेब ने जातिप्रथा और संप्रदाय उत्पीडन का दंश झेला था जो की उनके विचारों से साफ़ इंगित होता है। दलित और शोषित लोगों के लिए कबीर साहेब किसी मशीहा से कम न थे। जिस समय तलवार की धार से फैसले होते थे उस समय कबीर साहेब ने शोषित वर्ग की आवाज को उठाया जो उनकी मानवतावादी द्रष्टिकोण का परिचायक है।
कबीर ‘ब्राह्मणों’ के विरोधी नहीं थे, बल्कि ब्राह्मणवाद के विरोधी थे।
क और जहाँ शाश्त्रों और मंदिर तक दलित समाज की पहुँच दूर थी वही पर उन्हें गवार समझ कर उनका शोषण किया जाता था, जो बिलकुल भी उचित नहीं था, कबीर साहेब ने इसी का विरोध किया। जातिगत आधार पर स्वंय को ब्राह्मण समझ कर अन्य लोगो से श्रेष्ठ होने का दावा करने पर कबीर साहेब ने स्पष्ट किया की यदि तुम हमसे जाती के आधार पर ही श्रेष्ठ हो तो बताओ की तुम वही से क्यों आये जहाँ से हम आयें हैं। यदि वह मार्ग समान है तो कैसे तुम्हारा लहू तो दूध हुआ और हमारा नहीं। तार्किक आधार पर यह समझाने का प्रयत्न किया गया की हम सभी समान हैं।
जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया आन बाट काहे नहीं आया हिंदी मीनिंग
दोहेरे मापदंड देखिये की ऐसे तो उंच नीच का खेल चलता रहता है, लेकिन जब किसी भी तथाकथित श्रेष्ठ जाती के व्यक्ति को हॉस्पिटल में खून की जरुरत पड़ती है तो वह यह नहीं देखता है की खून किस बिरादरी / समाज और धर्म का है ! यदि समय पर खून मिल जाए तो वे भिखारी का भी खून लने को तैयार रहते हैं।