ज्ञानवापी प्रकरण भले ही अदालत में विचाराधीन हो लेकिन इसे लेकर काशी धर्म परिषद ने अपना फैसला सुनाया जिसके बाद सवाल उठता है क्या अदालत से बड़ी है धर्म परिषद्?
शुक्रवार को काशी धर्म परिषद की ओर से संतों की बैठक आयोजित की गई। जिसमें कुल 22 प्रस्तावों पर चर्चा हुई। इसमें प्रमुख रूप से संतों ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग की तत्काल दर्शन-पूजन की मांग की गई। ऐसा नहीं होने पर ज्ञानवापी परिसर में हिंदुओं के साथ मुस्लिमों का भी आवागमन प्रतिबंधित करने की बात कही गई।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही स्थित सुभाष भवन में आयोजित बैठक में विभिन्न मठों के मठाधीश, साधु-संत समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहासकार शामिल हुए। बैठक में संतों ने कहा कि अदालत का फैसला आने तक ज्ञानवापी में पूजा नहीं तो नमाज भी बंद होनी चाहिए।
बैठक की अध्यक्षता कर रहे पातालपुरी मठ के महंत स्वामी बालक दास ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंगनुमा आकृति मिली है। बावजूद इसके हमें हमारे आराध्य देवता की पूजा करने से रोका जा रहा है। वहीं मस्जिद में आम दिनों की तरह नमाज पढ़ी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि हमारी पूजा पर रोक है तो नमाज अदा करने पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।
काशी के मंदिरों के विध्वंस के इतिहास को बताया जाएगा
उन्होंने कहा कि यदि मस्जिद में नमाज अदा की जाएगी तो हम भी पूजा करने की मांग करेंगे। ऐसे में एक ही तरीका है कि जब तक इस मामले में कोर्ट का फैसला नहीं आता तब तक ज्ञानवापी में हिंदुओं के साथ ही मुस्लिमों के आवागमन पर भी प्रतिबंध लगाया जाए। दोनों पक्षों के साथ एक तरह का व्यवहार किया जाए।
संत परिषद ने मुस्लिम धर्मगुरूओं से अपील की कि वो सनातन धर्म के प्रमुख आस्था के केंद्र पर से अपना दावा छोड़ें। इतना ही नहीं धर्म परिषद में इस बात पर भी सहमति बनी की मक्का और मदीना के इमामों को पत्र लिखकर औरंगजेब के काशी के मंदिरों के विध्वंस के इतिहास को बताया जाएगा ।
काशी धर्म परिषद में जिन प्रस्तावों पर मुहर लगी उनमें वर्शिप एक्ट 1991 को खत्म करने और शिवलिंग के साथ छेड़छाड़ करने वालों पर तत्काल मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है।