जब तक धर्म एक आस्था और भावना का विषय था तब तक सभी उस रास्ते पर चलते रहे, लेकिन जब धर्म एक कथित रोजगार और लाभ का विषय बन जाए तो सभी इसे अपने अनुसार व्यख्यान करना चाहते है, क्यूंकि वो सत्यता और धर्म के मार्ग को अपनाने बजाये अपने बनाये मार्ग और पर भक्तों को चलवाना चाहतें है। इस दौरान वह खुद को परमात्मा से बढ़कर समझते है उन्हें लगता है कि ये भीड़ ( भक्त ) उस भगवान के लिए नहीं बल्कि यह उनके द्वारा बताये गए कथित सच को सुनने आयी है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उन धर्म के कथित ठेकेदारों को ऐसा विश्वास होता है कि जिनके पास जितनी बड़ी भीड़, वह उतना बड़ा विद्वान और शास्त्रार्थ माना जाता है। लेकिन ऐसे कथित धर्म के ठेकेदारों का धैर्य कितना है ? इसका अंदाज आप इस वीडियो को देखकर लगा सकते है। क्यूंकि एक विद्वान और शास्त्रार्थ होना धैर्य पर निर्भर है।
वीडियो महाराष्ट्र के नाशिक का है , भगवान हनुमान के जन्मस्थान को लेकर शास्त्रार्थ के दौरान मंगलवार को एक संत कर्नाटक के संत गोविंदानंद पर मीडिया के माइक से हमला करने का प्रयास करते दिखाई देता है। जानकारी है कि हनुमान का जन्मस्थान कौन सा है ? इस पर नाशिक में चल रहे शास्त्रार्थ में 3 घंटे तक चर्चा चलने पर भी कोई समाधान नहीं निकला।
जबकि यहाँ एक टिपण्णी पर एक संत अपना धैर्य खोते हुए इस कदर हंगामा हुआ कि गोविंदानंद सरस्वती पर मीडिया का माइक उठाकर हमला करने पर उतारू हो गया। जिसके बाद गोविंदानंद सरस्वती उठ गए और चर्चा तकरार में बदल गई। मौके पर मौजूद पुलिस ने गोविंदानंद सरस्वती को एक कमरे में ले जाकर बिठा दिया और बाकी सभी से भी हॉल खाली कराया।
दरअसल ये सारा हंगामा तब हुआ जब नाशिक के संतों ने पूछा कि गोविंदानंद सरस्वती किसके शिष्य हैं? तब उन्होंने जगतगुरु शंकराचार्य का नाम लिया, जिस पर सुधिरदास पुजारी नाम के संत ने कहा कि वो तो कांग्रेस को समर्थन करते हैं।
इस पर गोविंदानंद सरस्वती ने उंगली दिखाते हुए कहा कि आप उन्हें कांग्रेसी बोल रहे हैं। आप की हिम्मत कैसे हुई? माफी मांगिए।जिसके बाद सुधीरदास ने गोविंदानंद को मारने के लिए मीडिया का माइक उठा लिया।
शास्त्रार्थ शुरू होने के पहले ही आसन और बैठने पर विवाद की स्थिति निर्मित हुई थी। दरअसल नाशिक और त्रयंबकेश्वर के धर्माचार्यों ने कर्नाटक से आए गोविंदानंद सरस्वती के सोफे पर बैठने की व्यवस्था और स्थानीय संतो को नीचे गद्दे पर बैठाने का विरोध किया , सभी कह रहे हैं हम चर्चा करने के लिए आए हैं लेकिन कोई एक-दूसरे की सुनने को तैयार नहीं था।
इसका एक आशय यह यह भी लगाया जा सकता है कि ये दोनों संत राजनीती समर्थक है, सच क्या है इससे मॉतलब नहीं है बल्कि कौन भाजपा और कौन कांग्रेस का समर्थक है। जैसा की वीडियो में सुना जा सकता है।