दुनिया भर के डॉक्टरों ने केंद्र, राज्य सरकारों, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को पत्र लिखकर कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान की गई गलती को नहीं दोहराने के लिए कहा है। साथ ही उन टेस्ट और दवाओं का ज्यादा उपयोग नहीं करने की सलाह दी है जिनके कोरोना महामारी के इलाज में कारगर होने के ज्यादा सबूत नहीं मिले हैं।
पत्र में डॉक्टरों ने कहा है कि इस महामारी की अनिश्चितताओं के बीच क्लिनिकल मैनेजमेंट को लेकर उच्च गुणवत्ता वाला एक उचित गाइडेंस मौजूद है। साथ ही पत्र में कहा गया है कि इस बात के सबूत मिले हैं कि साल 2021 में कोरोना के दूसरी लहर के दौरान हुई गलती को फिर से दोहराया जा रहा है।
इन गलतियों में विटामिन कॉम्बिनेशन, एज़िथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेवीपिरवीर और आइवरमेक्टिन जैसी दवाओं का उपयोग शामिल हैं। जबकि इस बात के कम सबूत हैं कि ये दवाएं कोरोना महामारी के खिलाफ कारगर हैं।
जानकारों ने कहा आपदा में अवसर तलाशते डॉक्टर
इस बात से भी नहीं नकारा जा सकता है ? कि भारत में मेडिकल में लगातार निजी निवेश को बढ़ावा दिया गया है कई सरकारी संस्थानों को भी निजी संस्थानों सौंप दिया गया है।अधिकतर डॉक्टर और लैब सहित निजी दवाई कंपनियों के साथ कमीशन के लिए ऐसी दवाइयां और जांच लिखी जाती है। जिसमे बीमारी और दवाई के बीच संबंध मायने नहीं रखते है बस मोटी कमाई के अवसर देखे जाते है।
जबकि पत्र में यह भी कहा गया है कि दवाओं का इस तरह का उपयोग बिना नुकसान के नहीं है जैसा कि डेल्टा लहर ने दिखाया है। भारत में म्यूकोर्मिकोसिस और ब्राजील में एस्परगिलोसिस जैसे फंगल संक्रमण के प्रकोप के लिए अनुचित दवाओं के व्यापक दुरुपयोग को जिम्मेदार ठहराया गया था।
इसके अलावा पत्र में यह भी कहा गया कि डॉक्टर बिना लक्षण वाले या हल्के मामलों में भी अनावश्यक सीटी स्कैन, डी-डिमर और आईएल -6 लैब परीक्षणों कराने की सलाह देते हैं। साथ ही बिना किसी औचित्य के कोरोना संक्रमित को अस्पताल में भर्ती होने के लिए भी कहते हैं। इससे न केवल रोगियों और उनके परिवारों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है बल्कि बेड की कमी के करान कई बिना कोरोना वाले मरीजों की जान पर भी जोखिम बना रहता है।
डॉक्टरों ने पत्र में सरकार से सभी स्थानीय भाषाओं में घर में की जाने वाली रैपिड टेस्टिंग, आइसोलेशन को लेकर दिशानिर्देश तैयार करने का आह्वान किया। साथ ही यह भी कह गया कि राज्य प्रायोजित दवाओं, वैकल्पिक उपचारों या औषधि का वितरण जो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हैं, उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।