टेक फॉग ऐप सिर्फ एक ऐप नहीं है, टूलकिट तैयार करने की फैक्ट्री है जिसके पीछे के तार सरकार से जाकर जुड़ते हैं। हाल ही में जो मीडिया की रिपोर्ट सामने आयी है उससे दिशा रवि का मामला याद आने लगा। जब सरकार टूलकिट, टूलकिट जपते हुए एक नौजवान लड़की पर हमलावर हो गई थी, उसे जेल में बंद कर दिया गया।
पॉप स्टार रिहाना ने जब किसानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर टिप्पणी की थी, तब क्रिकेट के खिलाड़ी से लेकर फिल्मी सितारे तक एक ही तरह का बयान ट्वीट करने लगे थे। टूलकिट के जवाब में यह टूलकिट कहां से आया था? सरकार के पास टूलकिट तैयार करने के ऐसे कितने ऐप हैं, कितनी फैक्ट्रियां हैं, कोई नहीं जानता। इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि टेक फॉग ऐप पहला और आख़िरी ऐप रहा होगा।
यह उस राजनीतिक मनोवैज्ञानिक सिस्टम का हिस्सा है जिसके ऐसे कई ऐप और प्लेटफॉर्म हैं। गोदी मीडिया भी उसी तरह का एक ऐप है जिसके जरिये उसी तरह की प्रोपेगैंडा सामग्री फैलाई जाती है बल्कि मीडिया के कवर में उसे व्यापक मान्यता दिलाई जाती है। 2020 में मार्च महीने में तब्लीगी जमात को लेकर खास तरह के नफरती टेक्स्ट बनाए गए थे और उसे अनाम खातों के जरिये ट्विटर पर ट्रेंड कराया गया था। जमात को कोरोना जिहाद से जोड़ा
यहां कथित गोदी मीडिया ही नहीं बल्कि कई नेता आधिकारिक तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में तब्लीगी जमात का नाम कोरोना फैलाने वाले फैक्टर के रूप में लेने लगे थे यह एक तरह से नरसंहार को सामाजिक और आधिकारिक मंज़ूरी थी जहाँ एक समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने की कथित रणनीति गढ़ी जा रही थी।
उस वक्त कई पुलिस अधिकारी कहा करते थे कि गनीमत है कि तालाबंदी है वर्ना भीड़ कब मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठा ले कुछ कहा नहीं जा सकता ऐसा माहौल बन गया है। क्यूंकि ठेले वाले से सब्जी खरीदने से पहले और नाइ से बाल कटवाने से पहले उसका नाम और धर्म पूंछने की परम्परा हो गयी थी। कुछ इस तरह से टेक फॉग ऐप और गोदी मीडिया के जरिये कोरोना को मुसलमानों से जोड़ने की जो कोशिश हुई वो एक राजनीतिक प्रयोग का हिस्सा थी।
टेक फॉग की रिपोर्ट ने इसे और पुख्ता तौर पर साबित किया है कि टेक फॉग केवल प्रोपेगैंडा टूल नहीं है बल्कि नरसंहार को उकसाने का टूल है जिसक प्रयोग राजनैतिक पार्टी द्वारा कथित रूप से एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है।
पुलिस ने घर-घर में छापे मारे और जमात में गए लोगों को पकड़कर जेल में डाल दिया क्योंकि गोदी मीडिया के जरिये दिन-रात यही डिबेट हो रही था। बीमारी के बहाने मुसलमानों के प्रति नफरत के बाद अब डर भर दिया गया ताकि लोग अपने आप हिंसा का कदम उठा लें। आपको याद होगा तब्लीगी जमात के लोगों को रिहा करते वक्त कई हाईकोर्ट के आदेश हैं कि मीडिया ने नफरत फैलाई।
भाजपा के आईटी सेल की रहस्यमयी दुनिया में राष्ट्र निर्माण के नाम पर कितने नौजवानों को अपराधी बनाया ?
राष्ट्र निर्माण के नाम पर कितने नौजवानों को अपराधी बनाया जा रहा है इससे भी सतर्क होने की ज़रूरत है। उम्मीद है आईटी सेल के नौजवानों का ईमान जागेगा और वे ऐसी और कहानियों को बाहर लेकर आएंगे। सुल्ली डील और बुली बाई ऐप भी इसी तरह की फैक्ट्री में तैयार किए जाते रहे होंगे या फिर इस मानसिकता से तैयार किए गए लोग ही अपने आप ऐप बना रहे हैं, दोनों में कोई अंतर नहीं है।
इस काम के पीछे की जो विचारधारा है वो एक ही जगह से आ रही है, जिसका एक ही काम है- जनता के मन में मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा करना। इस तरह से कि उन्हें कोरोना फैलाने के नाम पर मारा जा सके, उनकी औरतों को नीलाम किया जा सके! यह विचारधारा भारत को इस तरह के समाज में बदल रही है ताकि बहुसंख्यक समाज के लड़कों को लगे कि ऐसा करना ग़लत नहीं है वे दंगाई बन जाएं।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि दो तरह के दंगाई होते हैं। एक ऑफलाइन दंगाई जो सीधे हिंसा में शामिल होते हैं और एक ऑनलाइन दंगाई जो इस तरह के ऐप के जरिये किसी समुदाय के प्रति हिंसा की भूख मिटाते हैं। किसी भी नरसंहार में केवल लाखों लोगों की हत्या नहीं होती बल्कि उसके पहले और उसके साथ साथ नफ़रत के इस तरह के वातावरण का भी बड़ा रोल होता है ,तभी तो घर-घर से लड़के हत्यारे बनेंगे और नरसंहार करेंगे।