कच्चे तेल का दाम बढ़ता है तो तुरंत तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा देती हैं, लेकिन कच्चे तेल का दाम घटने पर राहत देने के नाम पर पेट्रोलियम कंपनियों को मानो छींक आने लगती है. लगातार 100 रुपये के पार चल रहा पेट्रोल भराने वाली जनता की हकीकत यही है उसे राहत देने के नाम पर महज लटकाया जाता है.
जब त्योहार शुरू होने वाले हैं और एक-एक रुपये जनता के लिए कीमती होता है तब तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दाम पिछले तीन दिन में दो बार और डीजल की कीमत सात दिन में 5वीं बार बढ़ा दी है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, बंगाल, जम्मू कश्मीर, दिल्ली एनसीआर और पंजाब देश के वो राज्य हैं, जहां ज्यादातर जगहों पर पेट्रोल सौ रुपये से ज्यादा है.
65 पैसे की राहत देने में तेल कंपनियों ने लगा दिए 50 दिन कच्चे तेल की कीमत फरवरी में 6.42 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी तो पेट्रोल की कीमत में कंपनियों ने करीब 5 रुपये प्रति लीटर का इजाफा कर दिया. लेकिन अप्रैल में जब कच्चे तेल का दाम 1.33 डॉलर प्रति बैरल कम होता है तो वही फायदा जनता को देने के नाम पर पेट्रोल की कीमत में सिर्फ 16 पैसे की कमी की जाती है.
जुलाई महीने में देखें तो कच्चे तेल की कीमत 1.56 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी तो फौरन लगातार पेट्रोल का दाम बढ़ाते हुए 3 रुपये 3 पैसे का इजाफा प्रति लीटर तक पेट्रोलियम कंपनियों ने कर दिया, लेकिन अगस्त में फिर से जब कच्चे तेल के दाम 3.73 डॉलर प्रति बैरल तक कम हो गए तो सिर्फ 35 पैसे की कमी पेट्रोल के दामों में की गई.
पिछले 7 साल की बात करें 1 मार्च 2014 को घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 410 रुपये थी जो अब 884 रुपये है. 7 साल में सिलेंडर का दाम दोगुना बढ़ चुका है. लेकिन पूरी राहत जनता को ना गैस के दाम में मिल रही, ना पेट्रोल डीजल पर. एक अनुमान के मुताबिक, कच्चा तेल अगर एक डॉलर भी सस्ता हो जाए तो तेल कंपनियों को 8 हजार करोड़ रुपये की बचत होती है. जबकि पेट्रोल डीजल पर एक रुपया टैक्स बढ़ाने से 13 हजार करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा सरकार का होता है. टैक्स बढे़ तो सरकार कमाए, कच्चा तेल सस्ता हो तो पेट्रोलियम कंपनियां और आम आदमी देखता रह जाए, आखिर महंगाई से जलती जेब पर मरहम कब लगेगा?