किसी मसले पर मतभेद होना और उसे उजागर करना लोकतंत्र का मूल तत्व है। इसके जरिये जनभावना सामने आती है। लेकिन जब यही विरोध प्रदर्शन देश के हृदय स्थल पर राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र के खिलाफ आंदोलन में तब्दील हो जाए तो वह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ होता है।
यह बात सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीशों में शुमार जस्टिस डीवाई चंद्रचू़ड़ ने कही है। जाहिर है उनका इशारा देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हो रहे आंदोलनों को लेकर था।
एकाधिकार की बात करना उचित नहीं: 15 वें जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल व्याख्यान में जस्टिस चंद्रचू़ड़ ने कहा, मतभेदों को उजागर होने से रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल भी कानून व्यवस्था का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा, मतभेद उचित हैं, लेकिन ध्यान रहना चाहिए जब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार विकास और सामाजिक समन्वय की योजना पेश कर रही हो तब मिश्रित समाज वाले देश में एकाधिकार की बात करना उचित नहीं है।
मतभेद ‘सेफ्टी वाल्व’ की मानिंद: जस्टिस चंद्रचू़ड़ ने कहा कि मतभेदों और सवालों को महत्व न देने से देश में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद ‘सेफ्टी वाल्व’ की मानिंद हैं जिनसे होकर जनभावना सामने आती है और सरकार को उनके अनुसार नीतियों में सुधार करने का संदेश मिलता है। लेकिन यह सब संविधान के दायरे में होना चाहिए।
असहमत होने पर अपनी बात रखें
गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में छात्रों को असहमति पर बोलने का संदेश देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, यह भाव स्वविवेक से पैदा होता है। गलत बात के खिलाफ या असहमति पर बोलने से अधिवक्ता की पहचान बनती है।
मुकदमे की सुनवाई के समय न्यायाधीश के आगे खड़े होकर सम्मानजनक तरीके से असहमति जताई जा सकती है।
अपने वरिष्ठों और गुरुजनों के आगे भी इसी तरह से अपनी बात रखी जा सकती है। इसी प्रकार से असफलताओं से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। हर व्यक्ति को जीवन में कई बार असफलता मिलती है, वह उनसे सीख लेकर आगे बढ़ सकता है।